शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

बटवारा



सन् 1947 के करीब हमारे देश भारत का एक बटवारा हुआ था, मोहन दास करम चंद गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना के वजह से अरब से आये एक विदेशी धर्म के लिए और एक अलग देश पाकिस्तान बनाया गया था मुसलमानो के लिये। जिसका दर्द भारत के मूल निवासी जो हिन्दु समाज है वो आज तक नही भूल पाया है। आज हर राज्य हर जिले मे एक गांधी और जिन्ना पैदा हो गये है जो भारत को टुकड़ो मे बाँट कर उस पर राज करना चाहते है। इनमे से कुछ लोग हमारे देश कि राजनिति मे घुस गये है ।
  ताजा उदाहरण हमारे देश कि ऱाजधानी दिल्ली राज्य के कानून मंत्री सोमनाथ भारती का है।जिस देश कि परम्परा (अतिथि देवो भव-) रही हो वहाँ एक राज्य का कानून मंत्री यूगांडा से आये महिलाओ के साथ अभद्र व्यवहार करता है और उन पर नस्ल भेदी टीप्पणी करता है, तथा साथ ही साथ समाज मे बाटने वाली मानसिकता का संदेश देता है ।
  जिसके परिणाम स्वरूप दिल्ली मे हमारे देश के पूर्वी भाग अरूणाचल प्रदैश से आये छात्र को दिल्ली के निवासीयो ने उसके पहनावे को लेकर नस्ल भेदी  टीप्पणी की और जब उस छात्र ने इस बात का विरोध किया तो उसे वहाँ के लोगो ने बुरी तरह से पिटाई कि जिससे उसकी मौत हो गई ।
  अब इन सब घटनाओ को देखकर मेरे मन मे कुछ सवाल उठते है कि क्या उत्तरपूर्वी राज्यो के लोग भारत के निवासी नही है
? क्या उत्तर पूर्वी राज्यो को भारत से अलग करने कि तैयारी है?क्या दिल्ली कैवल सोमनाथ भारती,मनीषसिसोदिया,और प्रशांतभूषण जैसै देश के गद्दारो के बाप की जागीर है।
  कोई कहता है कि काश्मीर को भारत से अलग कर दो तो कोई नस्लवाद को बढावा देता है ।इसीलिए मैने कहा कि आज हर नगर हर शहर मे कही ना कही गांधी और जिन्ना फिर से पैदा हो गये है जो हमारे देश को कई टुकड़ो मे बाँटना चाहते है।
  आज जरूरत है तो सिर्फ इस बातकि कि जो लोग भारत को सशक्त और समृध देखना चाहते है वो एक जुट होकर राजनिति मे इन जैसे देशद्रोहीयो को आने से रोके क्योकि राजनिति से ही हमारे देश के भविष्य का निर्धारण होता है, और इनके खतरनाक ईरादो से दूरी बना कर रखे चाहै ये लाख प्रलोभन ही क्यूँ न दे।
जयहिन्द
वन्देमातरम्

सोमवार, 27 जनवरी 2014

गंदी राजनिति



  क्या हम हिन्दु इस देश के नागरिक नही है?क्या हमारा इस देश के संसाधन पर कोई अधिकार नही है?क्या हम हिन्दु जनम से ही आतंकवादी होते है? मेरा जबाब है नही।
  अब आप सोच रहे होंगे की ये कैसा सवाल है जिसका जबाब ब्लॉग लिखने वाला खुद ही दे रहा है और ये कैसा पोस्ट का टाइटल है। तो मै आपको बता दुं कि हमारे देश की राजनिति पर मेरा ध्यान तब से है जब से मैने होश संभाला है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को वहाँ कि राजनिति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करतीहै जहाँ का वह निवसी होता है,भले ही वह लाख दावा करे की उसे राजनिति से कोई मतलब नही है।
  (भारत) हमारे देश का नाम महाराज दुष्यन्त और महारानी शकुंतला के वीर और परम प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर रखा गया जो एक हिन्दु राजा थे। हम हिन्दु कई युगो से इसी भारत के निवासी रहे है। हमारे देश मे मुसलमान आये लूटेरा बनकर और उन्होने इस देश मे खुब लूटपाट मचाया और यहा के शाशक बन बैठे । उसके बाद 16वी शताब्दी के करीब हमारे देश मे अंग्रेज आये,उन्होने भी हमारे देश को खूब लूटा और हमारे देश पर शाशन किया। अंग्रेज हमारे देश मे लूटपाट और शाशन तो किया ही साथ ही साथ अपने देश का धर्म (ईसाई धर्म) भी लाकर हम पर थोप दिया तथा हमारी सभ्यता और संस्कृति, खुब नुकसान पहुँचाया ।
  और फिर 1947 मे हमारा देश अजाद हुआ अंग्रजो कि दासता से और जब देश मे शासन के लिये मुखिया चुनने की बात आई तो मुसलमानो ने कहा कि हम हिन्दुओ को शासक के रूप मे नही स्वीकार कर सकते इसलिये हमे अलग देश चाहीए,और अंग्रेजो की शिक्षा पद्धति के गुलाम मोहन दास करमचंद गांधी के ईशारे पर अरब के मुसलमानो के लिये भारत के टुकड़े कर के एक अलग देश बनाया गया पाकिस्तान । जब धर्म के नाम पर देश का बटवारा हो गया और मुसलमानो को जब पाकिस्तान जाने की बारी आई तब फिर गांधी ने अपनी गंदी राजनिति और अपने मुस्लिम प्रेम को जाहीर करते हुये ये सार्वजनिक बयान दिया-  (जिस मुस्लिम को पाकिस्तान जना है वो पाकिस्तान चले जाये और जिनको भारत मे रहना वो भारत मे ही रहे)।
  इसी तरह से जब नेहरू और सरदार पटेल मे प्रधानमंत्री बनने के लिये चुनने के बात आई तो गांधी ने हिन्दुओ के समर्थक रहे सरदार पटेल को दरकिनार कर मुस्लिमो के समर्थक रहे नेहरू को चुना। आज आजादी के 66-67 साल के बाद भी हम इस देश के दोयम दर्जे के नागरिको मे गिने जाते है हमारे देश का प्रधान मंत्री जिसे हमने चुन कर भेजा कि वो सभी को समान भाव से देखते हुये शासन करेगा वो अपनी मानसिक दिवालियेपन का परिचय देते हुये कहता है की देश के संसाधनो पर पहला हक मुसलमानो का होगा, मै पुछता हूँ क्यो?हम हिन्दु संसाधनो पर पहला हक मांगने किस देश मे जाये।ये तो नही बताते हमारे प्रधानमंत्री।
  इसी तरह हमारे देश का गृहमंत्री हम हिन्दुओ को आतकवादी बताता है।मै कहता हूँ कि अगर हम आतंकवादी होते तो आज हमारे देश मे एक भी मुसलमान न होता और न ही तुम जैसा देशद्रही हमारे देश का गृहमत्री होताऔर नही कोई गृहमंत्री ये कहता कि किसी भी मुस्लिम अपराधि को तंग न किया जाये।
 आज सरकार और हमारे चुने हुए प्रतिनिधि के उपेक्षा तथा गंदी राजनिति के कारण ही मेरे और मेरे जैसे हजारो लाखो भारतवासीयो के मन मे अशुरक्षा की भावना घर कर गई है और लगने लगा है कि मुझे भी अपने तथा अपने धर्म की रक्षा के लिये आतंकवादी बन कर इन आसुरी शक्तियो,देश द्रहियो का नाश करना चाहीये।
  गीता मे भगवान श्री कृष्ण ने कहा ही है अहींसा परम धर्म है किन्तु धर्म की रक्षा के लिये शस्त्र उठाना उससे भी बड़ा धर्म है।

जय श्री राम

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

दुविधा



  ब्लॉग लिखना मेरा शौक नही है,पर क्या करू हमारे देश मे हो रही राजनितिक उठा पटक, सरकार द्वारा लिये गये गलत निर्णय और कुछ हद तक मेरी बेरोजगारी भी जिम्मेदार है ।
 अब आप सोचेंगे की राजनितिक उठ पटक का ब्लॉग लिखने से क्या संबंध?तो मै बता दूँ कि पिछले दिनो हमारे देश की राजनिति मे एक नये सितारे का जन्म हुआ,नाम अरविन्द केजरीवाल इनका जन्म मुख्य रूप से कांग्रेस विरोध और भ्रष्टार को खत्म करने और एक नये तरह की राजनैतिक विकल्प के रूप मे हुआ। जिसको लेकर हमारे देश के तमाम न्यूज चैनल ओर मिडिया प्रतिष्ठानो ने खूब हो हल्ला मचाया। कुछ राजनितिज्ञो ने इन्हे कांग्रेस की बी टीम तक बोला ।                            
  इनकी पार्टी को भारतीय राजनिति मे आये ज्यादा दिन भी नही हुये थे कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव की घोषणा हुई और इनकी पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया और 28 सिटो पर अच्छा प्रदर्शन करते हुये जीत भी हासिल किया,भाजपा ने 32और कांग्रेस सिर्फ 8 सिटो पर सिमट कर रह गई।जब सरकार बनाने की बात आई तब इनका कांग्रेस विरोध बदलकर भाजपा विरोध हो गया जैसे की भाजपा की ही केन्द्र मे सरकार रही हो और सबसे भ्रष्ट भाजपा ही हो इससे उन रजनितिज्ञो की बात सच साबित हो गई की ये कांग्रेस की बी टीम है और इस तरह से इन्होने 15 से 20 दिनो तक पूरे दिल्ली मे राजनितिक अस्थिरता का माहौल बनाया और फिर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाया। सरकार बनने के बाद जब इनको दिल्ली की जनता से किये गये वादो को पूरा करना चाहिये था तब ये अपने कैबिनेट के मंत्रियो को लेकर सड़क पर धरना देने बैठ गये उस जगह पर जहां धारा 144 लगी हुई थी और जहाँ से हमारे गणतंत्र के पर्व की तैयारीयाँ होनी थी और जब इनसे पूछा गया तो इन्होने देशद्रोही की तरह बयान देते हुये बोला कैसा 26जनवरी?कैसा गणतंत्र ।
  अब जबसे लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई है तब से ये लोकसभा चुनाव की तैयारी मे लग गये है जिसके कारण दिल्ली मे दिल्ली की जनता के हित के लिये जो भी प्रशासनिक काम होने चाहिए थे वो ठप्प पड़ गये जिससे दिल्ली की जनता ठगी सी महसूस कर रही है ।
  कभी ये दिल्ली के मुख्यमंत्री होकर खुद कानून तोड़ते है,तो कभी ये और इनकी पार्टी के लोग देशद्रोहीयो की तरह बयान देते है।और तो और ये लोकसभा चुनाव की तैयरी भी कर रहे है जिससे की पूरे देश मे फिर से राजनितिक अस्थिरता फैला सके ।
  एक तो वर्तमान सरकार अपने गलत आर्थिक नितियो से पुरे देश मे बेरोजगारी का माहौल बना चुकी है दूसरी तरफ गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होते जा रहे है।
  अब मै खुद दुविधा मे हूँ कि आने वाले लोकसभा चुनाव मे किस को वोट दु या जिसको वोट दे रहा हूँ वो अरविन्द केजरीवाल की तरह गिरगिट और देशद्रोही निकला तो? कौन मुझ जैसे बेरोजगारो के लिए नये रोजगार के अवसर सृजन कर पायेगा

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

बदलती सोच बदलते हम




आज कल हमारे देश मे एक शब्द बहुत चलन मे है बलत्कार(RAPE)। ये शब्द चाहे किसी भी रूप मे हो लेकिन इस शब्द से हमारे देश की विश्व मे बहुत ही बदनामी होती है।इन सब चिजो को देख कर मन मे बहुत ही पीड़ा होती है
इस शब्द या घटना के दो पक्ष होते है,एक स्त्री और एक पुरूष,एक पिड़ित और एक अपराधी।चूकि हमारा समाज पुरूष प्रधान है इसलिए कभी भी या कही भी इस तरह कि घटना होने पर पुरूष  ही जिम्मेदार होता है, और होना भी चाहीये,क्योकि हमारा समाज पुरूष प्रधान है।
हमारे समाज मे वैदिक काल मे जब ये पुरूष प्रधान व्यवस्था बनाई गई थी तब दोनो के लिये कुछ मर्यादा निश्चित किया गया था जिससे इस तरह की घटनाओ पर कुछ हद तक अंकुश लगा था,पर आज कल इन घटनाओ को देखकर मन मे कुछ सवाल उठते है,कि क्या आज के समय मे स्त्री और परूष दोनो अपने मर्यादा मे है,क्या इन सब घटनाओ के लिए केवल और केवल पुरूष ही जिम्मेदार है,क्या समाज की कोई जिम्मेदारी नही बनती,क्या उन लड़को के मॉ बाप की कोई जिम्मेदारी नही होती जो आपराधी होते है या उन लड़कियो के मॉ बाप की कोई जिम्मेदारी नही होती जो पिड़िता होती है।
मेरा मानना है कि अपराधी और पिड़ता से पहले हम सब की जिम्मेदारी बनती है,पूरे समाज की जिम्मेदारी बनती है।आज हम विकास और सभ्यता के नाम पर जिस तरह से पश्चिमी देशो का अंधानुकरण करते जा रहे है इसी का परिणाम है, इस तरह कि घटनाए। हमारे समाज का निर्माण पश्चिम को ध्यान मे रख कर नही किया गया था ।
हमे अपने बच्चो को उनकी मर्यादा का बोध करवाना होगा। लड़कियो को ये बताना होगा कि उनको भारतीय समाज मे रहना है न कि पश्चिमी समाज मे,उस समाज मे जहॉ सूरत से ज्यादा सिरत को महत्व दिया जाता है
और लड़को को ये बताना होगा की स्त्रीया उपभोग की वस्तु नही होती है जैसा कि पश्चिमी समाज मे समझा जाता है बल्की हमारे समाज मे स्त्री किसी की मॉ है तो किसी की बहन है वह हमेशा भारतीय समाज मे आदर योग्य होती है,और हमारे आस पास टी वी चैनलो के माध्यम से तथा अन्य माध्यमो जो गंदगी तथा अश्लिलता परोसी जाती है उसका पुरजोर विरोध करना होगा,तभी हम इस बलत्कार नाम के कलंक से मुक्त हो पायेंगे नही तो हम हमेशा इन घटनाओ की जिम्मेदारी किसी पुरूष पर डल कर छाती पिटते रह जायेंगे

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

ये कैसा देश ये कैसै लोग

ये कैसा देश ये कैसै लोग
आज अपने देश मे ही दो तरह के देश उत्तपन्न हो गये है।एक भारत और एक इंडिया,आप सोचेंगे की ये कैसा बात कर रहा है।.....तो मै पहले आपको भारत और इंडिया मे अंतर बता दू।..पहले मै भारत के बारे मे बताऊ तो भारत वह देश है जहाँ वो लोग रहते है जो अन्न उगाता है जैसे किसान, मजदूर,ठेलेवाले और तमाम वो लोग जो अपनी दो वक्त कि रोटी के लिये अपना दिन रात एक कर देते है,यहाँ तक कि अपनी जान की बाजी तक लगाने से नही चूकते है।ये लोग अपनी कई अवश्यकताओ की पूर्ति के लिये सरकार पर निर्भर होते है,जैसे-शिक्षा,स्वास्थय आदि
अब बात करते है इंडिया कि इसमे वो लोग रहते है जो तमाम तरह कि सुविधाओ ,का उपभोग करते है। इनमे से कई सुविधाये तो सरकार द्वारा प्रदान कि जाती है तो कुछ सुविधाओ का निर्माण ये खुद करते है,जैसे- अच्छी सड़के, अच्छे स्कूल,बड़ी-बड़ी बिल्डींगे आदी।
इनको अपनी आजिविका के लिये ज्यादा सोचना नही पड़ता है क्योकि इनको उपर वाले से जरूरत से ज्यादा मिला होता है ।
..अब आते है मूल बात पर कि एक ही देश मे दो तरह के देश क्यूँ,तो ऐसा इस लिये कि जो लोग इंडिया मे रहते है उनमे से 95प्रतिशत लोग  तमाम तरह कि सुविधाओ पर अपना एक क्षत्र अधिकार समझते है,और अगर अगर इन सुविधाओ मे से भारत मे रहने वाले लोगो को कुछ सुविधा मिल जाती है तो इंडिया मे रहने वाले लोग अपने अधिकारो पर लगता है कि कोई डाका डाला जा रहा है।पर ये सिक्के दूसरे पहलू को भूल जाते है कि यही भारत के लोग तमाम तरह कि सुवधा को बनाने के लिये  अपनी जान की बाजी तक लगा देते है और बदले मे उन्हे क्या मिलता है बस दो वक्त की रोटि ।
और इन्ही सब बातो को देख कर मन विचलित हो जाता है एक तरफ तो एक बच्चे का स्कूल कि एक महिने की फिस 5से 7 हजार रूपये है और वही दूसरी तरफ दूसरे बच्चे के पूरे परिवार का एक महिने का खर्च 5 हजार है।  
 अब आप ही बताये कि ये कैसा देश और कैसे लोग नही है तो क्या है।
 भारत V/S India
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भारत में गांव है, गली है, चौबारा है।
इंडिया में सिटी है, माल है, पंचतारा है।

भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है।
इंडिया में फ्लैट और मकान है।

भारत में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है।
इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है।

भारत में खजूर है, जामुन है, आम है।
इंडिया में मैगी, पिज़्ज़ा, माजा का नकली आम है।

भारत में मटके है, दोने है, पत्तल है।
इंडिया में पोलीथीन, वाटर व वाइन की बोतल है।

भारत में गाय है, गोबर है, कंडे है।
इंडिया में सेहत नाशी चिकन बिरयानी व अन्डे है।

भारत में दूध है, दही है, लस्सी है।
इंडिया में खतरनाक विस्की, कोक व पेप्सी है।

भारत में रसोई है, आंगन है, तुलसी है।
इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है।

भारत में कथड़ी है, खटिया है, खर्राटे है।
इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है।

भारत में मंदिर है, मंडप है, पंडाल है।
इंडिया में पब है, डिस्को है,हॉल है।

भारत में गीत है, संगीत है, रिदम है।
इंडिया में डांस है, पॉप है, आइटम है।

मंगलवार, 4 जून 2013


आपने नेहरु के बारे में बहुत कुछ पढ़ा सुना होगा. मेरा लेख पढ़िए प्रमाण के
साथ....
नेहरु हिंदू थे या मुस्लिम:एक खोज भाग-१
(इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार जो अधिकांश लोग जानते है)
• गियासुद्दीन गाजी उर्फ गंगाधर नेहरु- पिता मोतीलाल नेहरु
• मोतीलाल नेहरु- पिता जवाहर लाल नेहरु,
• जवाहर लाल नेहरु- पिता मोतीलाल नेहरु/मुबारक अली
• मैमून बेगम उर्फ इंदिरा गाँधी- पिता जवाहर लाल नेहरु
• राजीव खान गाँधी- पिता फिरोज खान वल्द जहाँगीर नवाब खान, माता मैमून बेगम
उर्फ इंदिरा गाँधी. राजीव खान गाँधी ने ईसाई धर्म अपनाकर अपना नाम रोबर्टो
रखकर अंतोनियो मैनो उर्फ सोनिया कैथोलिक ईसाई से शादी की
• संजय खान गाँधी- पिता मोहम्मद युनुस खान, माता मैमून बेगम उर्फ इंदिरा गाँधी
• राउल विन्ची उर्फ राहुल गाँधी- पिता राजीव खान गाँधी उर्फ रोबर्टो (कैथोलिक
ईसाई)
• बियांका उर्फ प्रियंका गाँधी- पिता राजीव खान गाँधी उर्फ रोबर्टो (कैथोलिक
ईसाई), पति रोबर्ट वढेरा, कैथोलिक ईसाई



भाग-२ (हमारी खोज)
1. संलग्न तस्वीर में बायीं तरफ उपर नेहरु के दादा जी का तस्वीर है जो आनंद
भवन में लगा है और जिसपर लिखा है “जवाहर लाल नेहरु के दादा गंगाधर नेहरु”. ये
१८५७ के विप्लव के पूर्व दिल्ली के कोतवाल थे. नेहरु ने अपने जीवनी में इनके
बारे में लिखा है,
“My grandfather, Ganga Dhar Nehru, was Kotwal of Delhi for some time before
the great revolt of 1857.” (pg.2)
मुगल रिकॉर्ड से पता चलता है की १८५७ के विप्लव के समय और उससे पहले कोई भी
हिंदू दिल्ली का कोतवाल नही था. उस समय दिल्ली का कोतवाल था गयासुद्दीन गाजी.
यह दिल्ली में मुगलों का अंतिम कोतवाल था. तत्कालीन इतिहास से जानकारी मिलती
है की अंग्रेज सैनिक इसे ढूढ रहे थे और यह अपनी जान बचाने के लिए सपरिवार आगरा
की ओर भाग गया था.
नेहरु ने अपनी जीवनी में लिखा है, “The Revolt of 1857 put an end to our
family’s connection with Delhi…The family, having lost nearly all it
possessed, joined the numerous fugitives who were leaving the old imperial
city and went to Agra. He (Gangadhar) died at the early age of 34 in 1861”
(pg.2)
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है की गियासुद्दीन गाजी और गंगाधर नेहरु दोनों एक
ही व्यक्ति था. १८५७ में विप्लव के समय जब अंग्रेज सैनिक इन्हें ढूंड रहे थे
तो अपनी जान बचाने के लिए आगरा की ओर भाग गए साथ ही अपना पहचान छुपाने के लिए
अपना नाम भी बदल लिए और पहचान भी क्योंकि बाद में इनके परिवार का और कोई भी
सदस्य गियासुद्दीन के जैसा लिवास पहने नहीं दीखता है. यह वैसा ही है जैसे की
१९८४ के सिक्ख दंगे के समय अल्पसंख्यक क्षेत्रों मं8 सिक्खों ने अपने बाल
मुंडवा लिए और पगड़ी बांधना छोड़ दिए थे. परन्तु देखनेवाली बात यह है की
गियासुद्दीन ने छद्म नाम गंगाधर हिन्दुवाला तो रख लिया परन्तु सर नेम किसी
हिंदू का नही रखा शायद इसलिए की सर नेम खानदान को व्यक्त करता है. इसलिए एक
नया सर नेम ‘नेहरु’ रख लिया ताकि जरुरत पड़ने पर यथापरिस्थिति लोगों को संशय
में डाल सके और अपनी वास्तविक पहचान छुपा सकें. नेहरु सर नेम की उत्पति पर
नेहरु ने अपनी जीवनी में लिखा है, “A jagir with a house situated on the
banks of canal had been granted …and, from the fact of this residence,
‘Nehru’ (from nahar, a canal) came to be attached to his name.” (pg.1)
2. नेहरु ने अपने पिता मोतीलाल नेहरु के शिक्षा के बारे में लिखा है, “His
early education was confined entirely to Persian and Arabic and he only
began learning English in his early teens.” (pg.3)
प्रश्न उठता है की जब नेहरु पंडित थे तो उन्हें संस्कृत की शिक्षा तो अवश्य दी
जानी चाहिए थी भले ही उन्हें अरबी फारसी भी पढाया जाता. परन्तु उन्हें संस्कृत
की शिक्षा ही नही दी गयी. इतना ही नही नेहरु ने अपने जीवनी में कई ऐसे घटनाओं
का उल्लेख किया है जो दर्शाता है की पिता मोतीलाल या उनके चाचा और चचेरे भाईओं
के दिल में हिंदू धर्म, हिंदुओं के भगवान और हिंदू कर्मकांड में कोई दिलचस्पी
नही थी. इससे स्पष्ट होता है की ‘नेहरु’ पंडित तो क्या हिंदू भी नही थे. एक
स्थान पर नेहरु लिखते है, “Of religion I had very hazy notions. It seemed to
be a woman’s affair. Father and my older cousins treated the religious
question humorously and refused to take it seriously.”

*Please Join our New Page: Bharat is a Hindu Nation*
३. नेहरु ने अपने जीवनी में लिखा है मेरा जन्म १४ नवम्बर, १८८९ को इलाहाबाद
में हुआ, पर उन्होंने यह नही बताया की इलाहबाद में किस जगह हुआ था. मैं जब
इलाहबाद में था तो हिंदुस्तान दैनिक में एक लेख छपा था और उससे पता चला की
नेहरु का जन्म इलाहबाद के मीरगंज इलाके में हुआ था. लेख में उनके घर की तस्वीर
भी दी हुई थी जो एक सामान्य सा दो मंजिला घर था. मुझे लगा मुझे यहाँ से कुछ
बेहतर जानकारी मिल सकती है इसलिए मैं वहाँ जाने को उत्सुक हुआ, पर यह जानकर
हैरान रह गया की मीरगंज इलाका रेड लाईट एरिया था. मुझे आश्चर्य हुआ की इतने
बड़े व्यक्ति का जन्मस्थान वेश्यालय कैसे बन गया, परन्तु जब मैंने इस बाबत
जानकारी इकट्ठी करनी शुरू की तो पता चला की वो बहुत पहले से रेड लाईट एरिया था
और मोतीलाल रेड लाईट एरिया में ही रहते थे.
इसी दौरान मुझे एक नई जानकारी मिली की जवाहर लाल नेहरु के असली पिता मुबारक
अली था. मेरे पास इस बात के कोई साबुत नही है और हो भी नही सकता है, परन्तु
मैं निम्नलिखित कारणों से इस बात से इतिफाक रखता हु:
• मुबारक अली एक व्यापारी था और वह मोतीलाल के घर आया करता था.
• १८५७ के विप्लव में सबकुछ गंवाने के बाद नेहरु परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत
खराब हो चुकी थी, शायद इसीलिए वे रेड लाईट एरिया में भी रह रहे थे.
• मुबारक अली एक अय्याश किस्म का व्यक्ति था. मोतीलाल का रेड लाईट एरिया में
रहना और खराब आर्थिक स्थिति में कुछ भी असम्भव नही है.
• मोतीलाल को ‘इशरत मंजिल’ मुबारक अली से मिला था जिसका नाम मोतीलाल ने ‘आनंद
भवन’ रखा था
• नेहरु लिखते है की जब वे दशवें वर्ष में थे तो वे पुराने मकान से नए मकान
‘आनंद भवन’ में आये थे. मुबारक अली से नेहरु आनंद भवन आने से पूर्व परिचित थे
और मुबारक अली आनंद भवन आता जाता रहता था और नेहरु को बेटे जैसा प्यार करता था.
• नेहरु ने मुबारक अली के बारे में अपने जीवनी में लिखा है, “He came from a
well-to-do family of Badaun….and for me he was a sure haven of refuge
whenever I was unhappy or in trouble. I used to snuggle up to him and
listen, wide-eyed, by the hour to his innumerable stories……and the memory
of him still remains with me as a dear and precious possession.”
• नेहरु ने खुद स्वीकार किया है की उनका हिंदु होना महज एक दुर्घटना है और
उनके संस्कार मुस्लिम के हैं.
• जवाहर अरबी शब्द है जो एक कीमती पत्थर को व्यक्त करता है. कोई हिंदू और वो
भी पंडित अपने पुत्र का नाम अरबी क्यों रखेगा.
४. हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति के विषय में नेहरु के विचार कितने निम्न स्तर
के थे और हिंदू धर्म के प्रति उनके दिल में कितना विद्वेष था यह उनके
निम्नलिखित कथन से झलकता है:
“Hindu culture would injure India’s interests. By education I am an
Englishman, by views an internationalist, by culture a Muslim, and I am a
Hindu only by accident of birth. The ideology of Hindu Dharma is completely
out of tune with the present times and if it took root in India, it would
smash the country to pieces. [Source:Violation of Hindu HR-Need for a Hindu
nation-III by V Sunderam (Retd. IAS Officer), originally in “Reminiscences
of the Nehru Age” by M.O. Mathai]
भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सनातन धर्म जो विश्व की प्राचीनतम और महानतम
सभ्यता, संस्कृति और धर्मों में से एक है, जो जियो और जीने दो, वसुधैव
कुटुम्बकम और सत्यमेव जयते जैसे आदर्शों पर आधारित है, के विषय में कोई हिंदू
तो क्या इसे समझने वाला कोई भी इस प्रकार की सोच नही रख सकता है. इन्हें इस
बात का डर था की यदि हिंदू धर्म ने अपनी जड़े जमा ली तो देश के टुकड़े हो
जायेंगे. ये ठीक वैसा ही जैसे आज राहुल गाँधी कहता है की भारत को लश्कर ऐ
तोइबा से ज्यादा हिंदू कट्टरवाद से खतरा है. सवाल है देश के टुकड़े होने से
उनका तात्पर्य क्या था? मेरा मानना है, उन्हें लगता था की यदि हिंदू धर्म अपनी
जड़ें मजबूती से जमा लेती है तो भारत अखंड मुस्लिम राज्य नही बन सकेगा और
हिंदू अपने लिए हिंदुस्तान ले लेगा और भारत के टुकड़े हो जायेंगे. शायद आपको
मेरी सोच पर तरस आ रही होगी, लेकिन मेरे इस सोच का पर्याप्त आधार है और आप भी
देख लीजिए....
५. नेहरु का कहना है की उनका खानदान फर्रुखशियर का कृपा प्राप्त कर उसी के समय
(१७१६ ईस्वी) कश्मीर छोडकर मुगलों की सेवा के लिए दिल्ली आ बसे थे. वे अपनी
जीवनी में खुद को कश्मीरी पंडित साबित करने के लिए नाना प्रकार के अनर्गल
प्रलाप किये है जो की महत्वहीन और असम्बद्ध भी है, परन्तु उन्होंने कहीं भी
कश्मीर के उस भू-भाग का जिक्र नही किया है जहाँ के वे खुद को खानदानी बताते
है. परन्तु विडम्बना देखिये, खुद को कश्मीर पंडित साबित करने के लिए अनर्गल
प्रलाप करनेवाला नेहरु की राय कश्मीरी पंडितों के सम्बन्ध में कितना घिनौना और
निम्नस्तरीय है. नेहरु ने अपनी पुस्तक Glimses of World history में लिखा है:
“The treatment of men was sometimes worse than that of animals (some of the
animals like cows were actually revered because they were Gods).

Lower caste Hindus had a miserable life. Other historians have commented
that the treatment of women was even worse, specially women of lower
castes, they were considered the property of the upper caste Hindus, to be
molested and/or raped at will.

In many cases the new bride had to stay a night with the village Brahman
before she was married off. Kashmir converted to Islam during this time
period. It was cruelty like this that led to the whole sale conversion to
Islam. The new religion offered them equality and saved them from the
Brahmans.”

जरा तीसरे पैरा पर ध्यान दीजिए. नेहरु का मानना है की कश्मीर की सामाजिक
धार्मिक स्थिति बहुत ही खराब थी और वे ब्राह्मणों के अत्याचार से त्रस्त थे.
और इन्ही अत्याचार के परिस्थितियों में कश्मीर के लोगों ने सामूहिक रूप से
इस्लाम धर्म कबूल कर लिया. कश्मीर के इतिहास लेखक कल्हण, विल्हण या अन्य किसी
ने भी इसप्रकार की बातें नही लिखी है. दूसरी बात कश्मीर १४ वीं शताब्दी के
उत्तरार्ध से ही मुस्लिम अत्याचार से त्रस्त था. (मैं कश्मीर के इतिहास पर
जाना नही चाहता हूँ, पर मैं बता दूँ की नेहरु को भारतीय इतिहास की वास्तविक
जानकारी बिलकुल नही थी.) शायद नेहरु को यह पता नही था की सिकन्दर शाह जैसे
मुस्लिम शासकों ने कश्मीरी पंडितों के लिए तीन ही विकल्प दिए थे-इस्लाम कबूल
करो, घाटी छोड़ो या मरो और उसने लाखों की संख्या में ब्राह्मणों का कत्ल
करवाया था और यह की १८४६ में जब कश्मीर के महाराज गुलाब सिंह हुए तो १८४८ में
हजारों की संख्या में धर्मान्तरित मुस्लिम उनके दरबार में उपस्थित हुए थे और
अपने उपर मुस्लिम अत्याचार और जबरन धर्मान्तरण का हवाला देकर वापस हिंदू धर्म
में शामिल करने की प्रार्थना की थी. गुलाब सिंह इसके लिए आश्वाशन भी दिए थे पर
उनके पुरोहित की धर्मान्धता के कारण यह शुभ कार्य पूरा नही हो सका (My Frozen
Turbulence of Kashmir- by Jagmohan).
यह उस कश्मीरी पंडित का विचार है जो खुद को कश्मीरी कहते नही अघाता है और खुद
को कश्मीरी पंडित साबित करने के लिए मरता दिखाई देता है. कोई भी कश्मीरी पंडित
इस प्रकार की सोच नही रख सकता है. इससे स्पष्ट होता है की नेहरु पंडित तो क्या
हिंदू भी नही थे बल्कि कट्टर मुस्लिम थे. और यह उनके अगले वाक्य से स्पष्ट
होता है की ‘नए धर्म ने उन्हें समानता का अवसर दिया और उन्हें ब्राह्मणों से
बचाया.’ सवाल है यदि इस्लाम उसे इतना ही महान जान पडता था तो वे फिर खुद को
कश्मीरी पंडित साबित करने के लिए क्यों मरे जा रहे थे? वे मुसलमान क्यों नही
हो गये? और यदि कश्मीरी पंडितों का कश्मीर में उतना ही धाक था तो वो छोड़कर
मुगलों के तलुवे चाटने क्यों आ गए थे?
उपर्युक्त से स्पष्ट है की नेहरु के लिए हिंदुओं और हिंदू धर्म के लिए वैसे ही
घृणा थी जैसे एक कट्टर मुस्लिम में होता था और उसके नजर में दार-उल-इस्लाम और
इस्लाम में धर्मान्तरण ही हिंदुओं के अत्याचार से मुक्ति का मार्ग था. कश्मीर
दार-उल-इस्लाम के मार्ग पर अग्रसर था जबकि हिंदू धर्म की मजबूत जड़ें शेष भारत
में इस मार्ग की बाधाएं थी और जिसके कारण उन्हें भारत के टुकड़े होने का खतरा
दिखाई पडता था.
६. नेहरु के उपर्युक्त निष्कर्ष कांग्रेस-वामपंथी इतिहास लेखकों की प्रेरणा
स्रोत बन गयी है और ये भडूवे इतिहासकार अपने आका को खुश करने के लिए हर जगह
हिंदुओं और हिंदू संस्कृति को बदनाम करने के लिए ऐसे ही निष्कर्षों का सहारा
लेते है. वास्तविकता यह है की ये बुराइयां मध्यकालीन मुस्लिम अत्याचार और
भोगवाद को व्यक्त करती है जो कालांतर में उन्ही से प्रेरित होकर कुछ हिंदू
रजवाड़े और जमींदार तक पहुच गए थे.
७. किसी भी सभ्यता संकृति और धर्म को नष्ट करना हो तो सबसे पहले वहाँ की
शिक्षा व्यवस्था को विकृत कर देना चाहिए ये नेहरु ने अंग्रेजों से अच्छी तरह
सीख लिया था. प्रधानमंत्री बनने के बाद उसने अबुल कलाम आजाद को शिक्षा मंत्री
बनाकर अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु लगा दिया. इसमें हिंदुओं के गौरवशाली
इतिहास को विकृत और घृणित रूप में पेश किया गया और आक्रमणकारी मुस्लिमों का
महिमा मंडन किया गया जिसे पढकर लोगों में हीन भावना उत्पन्न होती है और यही
उसका उद्देश्य भी था. विश्व में एकमात्र भारत ऐसा देश है जहाँ की इतिहास में
आक्रमणकारियों को हीरो और अपने देश, अपनी सभ्यता और संस्कृति, धर्म और मर्यादा
की रक्षा हेतू लड़नेवाले वीरों को विलेन के रूप में पेश किया गया है.
कांग्रेस-वामपंथी इतिहासकार हमे यह पढ़ने और मानने के लिए विवश करते है की
मुस्लिमों के भारत आने के पहले भारत की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, प्रशासनिक
स्थिति बहुत ही खराब थी और उसमे व्यापक सुधार और विकास मुस्लिमों के आगमन
पश्चात ही हुआ है जबकि सच्चाई ठीक इसके विपरीत है. इन बातों से भी स्पष्ट है
की नेहरु वास्तव में मुसलमान थे.
८. जिन्ना और मुस्लिम लीग ने जब हिंदुओं के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्यवाही की
घोषण की और हिंदुओं की हत्या, लूट और हिंदू स्त्रियों के बलात्कार होने लगे उस
समय नेहरु भारत के अंतरिम प्रधानमंत्री थे, पर उन्होंने इसे रोकने का कोई
प्रयत्न नही किया, परन्तु बिहार में जैसे ही कोलकाता में मारे गए लोगों के
परिजनों ने इसके विरोध में प्रतिक्रिया व्यक्त की इन्होने तत्काल सेना भेजकर
उन्हें गोलियों से भुनवा दिया.
९. शेख अब्दुल्ला १९३१ से ही घाटी में उत्पात मचा रहा था, महाराजा हरिसिंह के
विरुद्ध आन्दोलन चला रहा था और हिंदुओं का खुले आम कत्ल और लूटमार कर रहा था,
पर जब महाराजा ने शेखअब्दुल्ला को नजरबंद कर शांति स्थापना का प्रयास किया तो
नेहरु शेख अब्दुल्ला के समर्थन में कश्मीर में दंगे फ़ैलाने पहुँच गए. नेहरु
ने शेख अब्दुल्ला को शेर-ए-कश्मीर एवं लोगो का प्रिय हीरो बताते हुए अपने भाषण
में कहा, “यह बड़े दुःख की बात है की कश्मीर प्रशासन अपने ही आदमियों का खून
बहां रही है. मैं कहूँगा की उसका यह कृत्य प्रशासन को कलंकित कर रही है और अब
यह ज्यादा दिन तक नही टिक सकती. मै कहता हू की कश्मीर की जनता को अब और अपनी
आजादी पर हमला एक पल भी बर्दाश्त नही करना चाहिए. यदि हम अपने शासक पर काबू
पाना चाहते है तो हमे पूरी शक्ति के साथ उसका विरोध करना चाहिए. (Sardar
Patel’s Correspondence-by Durga Sinh)
ज्ञातव्य है की एक तरफ हरिसिंह जब अपने अल्पसंख्यक हिंदुओं, बौधों और सिक्खों
को बचाने का प्रयास कर रहे थे उसी समय हैदराबाद में निजाम हिंदुओं पर भयानक
अत्याचार कर रहे थे ताकि हैदराबाद से हिंदू पलायन कर जाये और हैदराबाद मुस्लिम
बहुल हो जाये ताकि वह भारत में विलय करने को बाध्य न हो, पर नेहरु ने उस क्रूर
निजाम को कुछ भी नही कहा जबकि हरिसिंह के पीछे पडकर शेख अब्दुल को गद्दी पर
बिठाकर उन्हें राज्य से भी बाहर कर दिया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे
न केवल संस्कार से मुस्लिम थे बल्कि विचार से भी मुस्लिम ही थे और हम सहमत है
की उनका हिंदू होना महज एक दुर्घटना मात्र था.

१०. जब महाराज हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर दिया तो नेहरु ने
उसे अस्थायी घोषित कर प्लेबीसाईट के माध्यम से अंतिम निर्णय की घोषणा की.
जम्मू-कश्मीर के सर्वेक्षण करनेवाले शिवन लाल सक्सेना ने अपने रिपोर्ट में
बताया की ‘७८% मुस्लिम आबादी वाला जम्मू-कश्मीर में प्लेबीसाईट का परिणाम भारत
के पक्ष में होने की उम्मीद करना महा पागलपन है’. पर नेहरु ने उनकी बातों पर
ध्यान नही दिया. इतना ही नही शेख अब्दुल्ला के साथ मिलकर गुपचुप धारा ३७०
तैयार कर लिया और संसद में दबाव डालकर पास भी करवा लिया जो आजतक भारत की गले
की हड्डी बनी हुई है. कश्मीरी आतंकवाद और भारत में मुस्लिम आतंकवाद की जड़
नेहरु की यही तुष्टिकरण नीति थी. (कश्मीर समस्या पर विशेष जानकारी के लिए मेरा
लेख “अखंडता पर सवाल: धारा ३७०” पढ़ें)
११. जब हमारी सेना जीत के करीब पहुँच गयी थी तब इन्होने अकारण एक तरफा युद्ध
विराम की घोषणा कर दी जिसके कारण आज भी जम्मू-कश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा
पाकिस्तान के पास है.
१२. जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया और हमारी सेना उससे लोहा ले रही
थी उस समय पाकिस्तान को ५५ करोड़ रूपया देने में गाँधी के साथ इनका भी हाथ था.
१३. नेहरु को राष्ट्रवाद से घृणा था. वह उसे ‘बू’ कहते थे (भारत गाँधी नेहरु
की छाया में- लेखक गुरु दत्त) पर वास्तविकता यह थी की उसकी नजर में राष्ट्रवाद
का मतलब हिंदू राष्ट्रवाद से था और वे तो हिंदुओं से घृणा करते थे. हिंदू और
हिंदुत्व की बात करनेवाले उनके नजर में देशद्रोही था (भारत गाँधी नेहरु की
छाया में).
१४. जब धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ तो कायदे से इस्लाम के सभी अनुयायी
को पाकिस्तान और बंगलादेश में चले जाना चाहिए था और हिन्द सभ्यता और संस्कृति
के समर्थक को भारत आ जाना चाहिए था परन्तु गाँधी और नेहरु के कारण यह नही हो
सका जिसका परिणाम यह हुआ है की नेहरु गाँधी के छलावे में फंसकर बंगलादेश और
पाकिस्तान में रह जानेवाले लाखों करोड़ों गैर मुस्लिम आज महज कुछ हजारों में
सिमट गए है और मौत से भी बत्तर जिंदगी जीने को बाध्य है. वे आज भी लूट, हिंसा,
बलात्कार और धर्मान्तरण के शिकार हो रहे है और अपना अस्तित्व बचाने के लिए
भारत से शरण की मांग कर रहे है. इतना ही नही हिंदुस्तान के हिंदुओं के सीने पर
आज भी मुसलमान मुंग दल रहे है तथा कट्टरवादी मुस्लिमों और नेहरु गाँधी के उपज
छद्मधर्मनिरपेक्षवादी राजनेताओं के षड्यंत्र से हिंदुस्तान की अखंडता एकबार
फिर संकट में पड़ती जान पर रही है.
१५. नेहरु खुद को नास्तिक कहते थे. पर वास्तविकता यह है की वे राजनितिक कारणों
से खुद को मुस्लिम या इस्लाम समर्थक नही कह पाते थे और इसीलिए वे नास्तिकता का
चोला ओढ़े रहते थे और इस नास्तिकता की आड़ में हिंदुओं और हिंदू धर्म के
विरुद्ध अपने मुस्लिम संस्कार, विचार और कार्यों को संरक्षण दे रहे थे.
१६. नेहरु ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण को संगठित रूप दिया
जिसका दुष्परिणाम पूरा देश भुगत रहा है.
१७. नेहरु खुद तो यह स्वीकार करते ही थे की उनके संस्कार मुस्लिम के है,
उपर्युक्त तथ्यों और उनके कार्यों के आधार पर मेरा मानना है की वे अपने विचार
और कार्य से भी मुस्लिम ही थे. उनके साथ जुड़ा हिंदू शब्द उनके लिए कष्टकारी
था जिसकी अभिव्यक्ति वे यदा कदा और हिंदू होने को महज एक दुर्घटना कहकर व्यक्त
करते थे. उनका नास्तिक होना ठीक वैसे ही था जैसे आज रोमन कैथोलिक ईसाई सोनिया
और उसकी संताने जनता को धोखा देने के लिए हर जगह अपना धर्म ‘Religious
Humanity’ लिखते है.

भाग-३
इंदिरा गाँधी के जीवन और कार्य भी इस ओर संकेत करता है की नेहरु मुस्लिम थे:
• मैमून बेगम उर्फ इंदिरा गाँधी फिरोज खान वल्द जहाँगीर नवाब खान से निकाह की
थी.
• मैमून बेगम उर्फ इंदिरा गाँधी के दोनों पुत्र राजीव खान गाँधी और संजय खान

गाँधी के पिता मुस्लिम ही थे.
• इंटरनेट से प्राप्त जानकारी के अनुसार इनके दोनों पुत्रों का आवश्यक मुस्लिम
संस्कार भी हुआ था.
• फिरोज खान का मकबरा इस बात का प्रमाण है की इंदिरा गाँधी अपने मुस्लिम
संस्कारों को नही त्यागी थी.
• १९७१ की लड़ाई में ९२ हजार से उपर पाकिस्तानी सैनिक बंदी बनाये गए थे जिसे
इंदिरा गाँधी ने बिना शर्त छोड़ दिया. वे चाहते तो इसके बदले पाक अधिकृत
कश्मीर का सौदा कर सकती थी. कुछ नही तो बदले में पाकिस्तान द्वारा बंदी बनाये
गए भारतीय सैनिकों को तो रिहा करवा ही सकती थी पर उन्होंने ऐसा कुछ नही किया.
• जनसंख्या नियंत्रण की नीति के तहत इनके द्वारा चलाये गए नशबंदी अभियान के
बारे में तत्कालीन इतिहासकार लिखते है, “हिंदुओं को उनके घरों, दुकानों यहाँ
तक की मंदिरों से भी खिंच खिंच कर नशबंदी किया जाने लगा, परन्तु इस सरकार की
कभी हिम्मत नही हुई की वे एक मस्जिद से किसी मुसलमान को खिंच ले या एक ईसाई को
किसी गिरजाघर से खिंच लें.” इस घटना का जिक्र होने पर बचपन में मेरी बुआ बताई
थी की इंदिरा गाँधी हिंदू और मुसलमान की जनसंख्या बराबर करना चाहती थी.
• इंदिरा गाँधी अफगानिस्तान बाबर के मजार पर सिजदा करने गयी थी
• अरब के प्रिंस ने इंदिरा गाँधी को मक्का आने का निमंत्रण दिया था जहाँ गैर
मुस्लिमों को जाना वर्जित है.

क्यों मुझे गाँधी पसंद नहीं है ?
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्...तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।


15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।

उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता